पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२६१

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दूसरा गर्भांक

स्थान---गैबी, पेड़, कूँवा, पास बावली

( दलाल, गंगापुत्र, दूकानदार भडेरिया और भूरीसिह बैठे हैं )

दलाल---कहो गहन यह कैसा बीता? ठहरा भोग बिलासी। माल-वाल कुछ मिला, या हुआ कोरा सत्यानासी? कोई चूतिया फँसा या नहीं? कोरे रहे उपासी?

गंगा---

मिलै न काहे भैया, गंगा मैया दौलत दासी॥
हम से पूत कपूत की दाता मनकनिका सुखरासी।
भूखे पेट कोई नहिं सुतता, ऐसी है ई कासी॥

दूकान०---परदेसियौ बहुत रहे पाए?

गंगा---और साल से बढकर।

भंडे०---पितर-सौंदनी रही न-अमसिया,

झूरी०---रंग है पुराने झंझर॥

खूब बचा ताड़यो, का कहना,

तूँ हौ चूतिया हंटर।

भंडे०---हम न तड़बै तो के तड़िए? यही किया जनम भर॥

दलाल---जो हो, अब की भली हुई यह अमावसी पुनवासी।

गंगा०---भूखे पेट कोई नहिं सुतता, ऐसी है ई कासी॥