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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२७३

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प्रेमजोगिनी

मनिकचंद्र मिस्तरी से शिल्पविद्या-निपुण, वाजपेयी जी से तन्त्रीकार, श्री पंडित बेचनजी, शीतलजी, श्रीताराचरण से संस्कृत के और सेवक तथा श्रीबाबू गोपाल चंद्र से पूर्व में और अब हरिश्चंद्र से भाषा के कवि, बाबू अमृतलाल, मुंशी गन्नूलाल, मुंशी श्यामसुंदरलाल से शास्त्रव्यसनी और एकांतसेवी,श्रीस्वामी विश्वरूपानंद से यति, श्रीस्वामी विशुद्धानंद से धर्मोपदेष्टा, दातृगणैकाग्रगण्य श्रीमहाराजाधिराज विजयनगराधिपति से विदेशी सर्वदा निवास करके नगर की शोभा दिन दूनी रात चौगुनी करते रहते हैं।

जहाँ क्वींस कालिज ( जिसके भीतर-बाहर चारों ओर श्लोक और दोहे खुदे हैं ), जयनारायण कालिज से बड़े, बंगाली टोला, नार्मल और लंडन मिशन से मध्यम, तथा हरिश्चंद्र स्कूल से छोटे तथा महाराज काश्मीर और महाराज दरभंगा की पाठशालादि अनेक विद्यामंदिर हैं, जिनमें संस्कृत, अँगरेजी, हिंदी, फारसी, बँगला, महाराष्ट्री की शिक्षा पाकर प्रति वर्ष अनेक विद्यार्थी विद्योत्तीर्ण होकर प्रतिष्ठालाभ करते हैं; इनके अतिरिक्त पंडितों के घर में तथा हिंदी-फारसी पाठकों की निज शाला में अलग ही लोग शिक्षा पाते है, और राय संकटाप्रसाद के परिश्रमोत्पन्न पबलिक लाइब्रेरी, मुंशी सीतलप्रसाद का सरस्वती-भवन, कार्माइ केल लाइब्रेरी, बंगसाहित्य-समाज, बाल सरस्वती