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भारतेंदु-नाटकावली

भवन, हरिश्चंद्र का सरस्वती-भंडार इत्यादि अनेक पुस्तक-मंदिर हैं, जिनमें साधारण लोग सब विद्या की पुस्तकें देखने पाते हैं।

जहाँ मानमंदिर ऐसे यंत्रभवन, सारनाथ की धमेख से प्राचीनावशेष चिह्न, विश्वनाथ के मंदिर का वृषभ और स्वर्णशिखर, राजा चेतसिंह के गंगा-पार के मंदिर, कश्मीरी-मल की हवेली और क्वींस कालिज की शिल्पविद्या और माधोराय के धरहरे की उँचाई देखकर विदेशी जन सर्वदा चकित रहते हैं।

जहाँ महाराज विजयनगर के तथा सरकार के स्थापित स्त्री-विद्यामंदिर, औषधालय, अंधभवन, उन्मत्तागार इत्यादिक लोकद्वय-साधक अनेक कीर्तिकर कार्य हैं, वैसे ही चूड़-वाले इत्यादि महाजनो का सदावर्त्त और श्री महाराजाधिराज सेधिया आदि के अटल सत्र से ऐसे अनेक दीनों के आश्रयभूत स्थान हैं जिनमें उनको अनायास ही भोजनाच्छादन मिलता है।

जहाँ नारायण भट्ट जी का और शेष और धर्माधिकारी पंडितो का वंश, अहोबल शास्त्री, जगन्नाथ शास्त्री, गोस्वामी श्री गिरिधर जी, पंडित काकाराम, पंडित मायादत्त, पंडित हीरानंद चौबे, काशीनाथ शास्त्री, पंडित भवदेव, पंडित सुखलाल और भी जिनका नाम इस समय मुझे