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प्रेमजोगिनी

जहाँ की बनी कमखाब, बाफता, हमरू, समरू, गुलबदन, पोत, बनारसी साड़ी, दुपट्टे, पीताम्बर, उपरने, चोलखंड, गोंटा, पट्टा इत्यादि अनेक उत्तम वस्तुएँ देश-विदेश जाती हैं और जहाँ की मिठाई, खिलौने, चित्र, टिकुली, बीड़ा इत्यादि और भी अनेक सामग्री ऐसी उत्तम होती हैं कि दूसरे नगर में कदापि स्वप्न में भी नहीं बन सकतीं।

जहाँ प्रसादी तुलसी-माला फूल से पवित्र और स्नायी स्त्री-पुरुषो के अंग के विविध चंदन, कस्तूरी, अतर इत्यादि सुगंधि-द्रव्य के मादक आमोद-संयुक्त परम शीतल तापत्रय-विमोचक गंगाजी के कण स्पर्श मात्र से अनेक लौकिक अलौकिक ताप से तापित मनुष्यों का चित्त सर्वदा शीतल करते हैं।

जहाँ अनेक रंगो के कपड़े पहने, सोरहो सिंगार, बत्तीसो आभरण सजे, पान खाए, मिस्सी की धड़ी जमाए, जोबन-मदमाती झमझमाती हुई बारबिलासिनी देव-दर्शन वैद्य-ज्योतिषी-गुणीगृहगमन, जार-मिलन, गान-श्रावण, उपवन-भ्रमण इत्यादि अनेक बहानो से राजपथ में इधर-उधर झूमती-घूमती नैनों के पटे फेरती बिचारे दीन पुरुषों को ठगती फिरती हैं और कहाँ तक कहैं काशी काशी ही है। काशी सी नगरी त्रैलोक्य में दूसरी