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भारतेंदु-नाटकावली

नहीं है। आप देखिएगा तभी जानिएगा, बहुत कहना व्यर्थ है।

वि० पंडत---वाह-वाह! आपके वर्णन से मेरे चित्त का काशी- दर्शन का उत्साह चतुर्गुण हो गया। यो तो मैं सीधा कलकत्ते जाता, पर अब काशी बिना देखे कहीं न जाऊँगा। आपने तो ऐसा वर्णन किया मानो चित्र सामने खड़ा कर दिया। कहिए वहाँ और कौन-कौन गुणी और दाता लोग हैं जिनसे मिलूँ।

सुधा०---मैं तो पूर्व ही कह चुका हूँ कि काशी गुणी और धनियों की खान है, यद्यपि यहाँ के बड़े-बड़े पंडित जो स्वर्गवासी हुए उनसे अब होने कठिन हैं, तथापि अब भी जो लो हैं दर्शनीय और स्मरणीय हैं। फिर इन व्यक्तियों के दर्शन भी दुर्लभ हो जायँगे, और यहाँ के दाताओ का तो कुछ पूछना ही नहीं। चूड़ की कोठीवालों ने पंडित काकाराम जी के ऋण के हेतु एक साथ बीस सहस्र मुद्रा दीं। राजा पटनीमल के बाँधे धर्मचिन्ह कर्मनाशा का पुल और अनेक धर्मशाला, कूएँ, तालाब, पुल इत्यादि भारत-वर्ष के प्रायः सब तीर्थों पर विद्यमान हैं। साह गोपालदास के भाई साह भवानीदास की भी ऐसी ही उज्ज्वल कीर्ति है और भी दीवान केवलकृष्ण, चम्पतराय अमीन इत्यादि बड़े-बड़े दानी इसी सौ वर्ष के भीतर हुए हैं। बाबू