भारतेंदु जी का विवाह शिवाले के रईस लाला गुलाबराय की पुत्री श्रीमती मन्नोदेवी से बड़े समारोह के साथ हुआ था। इनके शिक्षा क्रम के टूटने का प्रधान कारण इनकी जगदीश यात्रा है जो घर को स्त्रियों के विशेष आग्रह से हुई थी। जगन्नाथ जी का दर्शन करते समय वहाँ सिंहासन पर भोग लगाने के समय भैरवमूर्ति का बैठाना देख कर भारतेंदु जी ने इसको अप्रमाणिक सिद्ध किया और अंत में वहाँ से भैरवमूर्ति हटवा ही कर छोड़ा। इसी पर किसी ने 'तहकीकात पुरी' लिखा, तब आपने उसके उत्तर में 'तहकीकात पुरी को तहकीकात' लिख डाला। जगदीश-यात्रा से लौटने पर 'संवत् सुभ उनईस सत बहुरि, तेइसा मान' में यह बुलंदशहर गए। इसके बाद यह फिर यात्रा करने निकले और इस बार---
'प्रथम गए चरणाद्रि कान्हपुर को पग धारे।
बहुरि लखनऊ होइ सहारनपूर सिधारे॥
तहँ मनसूरी होइ जाइ हरिद्वार नहाए।
फेर गए लाहौर सुपुनि अम्बरसर आए॥
दिल्ली दै ब्रज बसि आगरा देखत पहुँचे आय घर।
तैतीस दिवस में यातरा यह कीन्ही हरिचंद बर॥
इसके ६ वर्ष बाद सं० १९३४ में यह पहिले पुष्कर यात्रा करने गए और वहाँ से लौटने पर उसी वर्ष हिन्दी बर्द्धिनी सभा द्वारा निमंत्रित होकर फिर प्रयाग गए।
सं० १९३६ में भारतेंदु जी ने सरयूपार की यात्रा की। सं० १९३६ वि० में भारतेंदु जी उदयपुर गए। पत्थर के रोड़े, पहाड़, चुंगी, चौकी तथा ठगी का उस समय के मेवाड़ का आपने