पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७१
प्रेमजोगिनी

माधव शास्त्री---आणि सभेचे?

महाश---सभेचे तर मी सांगीतलेंच की धनतुंदिल शास्त्रीचे अधिकारांत आहे, आणि दोन तीन दिवसाँत ते बंदोबस्त करणार आहेत।

गप्प पंडित---क्यों महाश! इस सभा में कोई गौड़ पंडित भी हैं वा नहीं?

महाश---हॉ पंडित जी, वह बात छोड़ दीजिए, इसमें तो केवल दाक्षिणात्य, द्राविड़ और क्वचित् तैलंग भी होगे, परंतु सुना है कि जो इसमें अनुमति करेंगे वे भी अवश्य सभासद होंगे।

गप्प पंडित---इतना ही न, तब तो मैंने पहिले ही कहा है, माधव शास्त्री! अब भाई यह सभा दिलवाना आप के हाथ में है।

माधव---हाँ पंडित जी, मैं तो अपने शक्तयनुसार प्रयत्न करता हूँ, क्योंकि प्रायः काका ( धनतुंदिल शास्त्री ) जो कुछ करते हैं उसका सब प्रबंध मुझे ही सौंप देते हैं। ( कुछ ठहर कर ) हॉ, पर पंडित जो, अच्छा स्मरण हुआ, आप से और न्यू फांड ( New fond ) शास्त्री से बहुत परिचय है, उन्हीं से आप प्रवेश कीजिए, क्योकि उनसे और काका जी से गहरी मित्रता है।