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भारतेंदु-नाटकावली

गप्प पंडित---क्या क्या शास्त्री जी? न्यू---क्या? मैंने यह कहीं सुना नहीं।

गोपाल---कभी सुना नहीं इसी हेतु न्यू फांड।

गप्प पंडित---मित्र! मेरा ठट्ठा मत करो। मैं यह तुम्हारी बोली नहीं समझता। क्या यह किसी का नाम है? मुझे मालूम होता है कि कदाचित् यह द्रविड़ त्रिलिंग आदि देश के मनुष्य का नाम होगा। क्योंकि उधर की बोली मैंने सुनी है उसमें मूर्द्धन्य वर्ण प्रायः बहुत रहते हैं।

माधव शास्त्री---ठीक पंडित जी, अब आप का तर्कशास्त्र पढ़ना आधा सफल हुआ। अस्तु ये उधर ही के हैं जो आप के साथ रामनगर गए थे, जिन्होने घर में तमाशे वाले की बैठक की थी---

गप्प पंडित--–हाँ हाँ, अब स्मरण हुआ, परंतु उनका नाम परोपकारी शास्त्री है और तुम क्या भांड कहते हो?

गोपाल शास्त्री---वाह पंडित जी, भांड नहीं कहा फांड कहा--- न्यू फांड अर्थात् नये शौखीन। सारांश प्राचीन शौखीन लोगों ने जो-जो कुछ पदार्थ उत्पन्न किए, उपभुक्त किए उन ही उनके उच्छिष्ट पदार्थ का अवलम्बन करके वा प्राचीन रसिको की चाल-चलन को अच्छी समझ हम को भी लोक वैसा ही कहें आदि से खींच-खींच के रसिकता लाना, क्या शास्त्री जी ऐसा न इसका अर्थ?