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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२८८

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भारतेंदु-नाटकावली

सफेत खड़खड़ीत उपर्णा पाँघरणार अनाथा वालानींच शिकविलेंत बरें।

( सब आग्रह करके उसको पिलाते हैं )

महाश---कां गुरु दीक्षित जी अब पलेती जमविली पाहिजे।

बुभु०---हाँ भाई, घे तो बंटा आणि लाव तर एक दोन चार।

महाश---( इतने में अपना पान लगाकर खाता है और दीक्षित जी से ) दीक्षित जी, १५ ब्राह्मण ठोक्याच्या कमरयांत पाठवा; दाहा बाजतां पानें मॉडलो जातील, आणि आज रात्री वसंतपूजेस १० ब्राह्मण लवकर पाठवा कारण मग दूसरे तड़ाचे ब्राह्मण येतील। ( ऐसा कहता हुआ चला जाता है )

बुभु०---( उसको पुकारते हुए जाते हैं ) महाश! दक्षिणा कितनी?

( महाश वहीं से चार अंगुली दिखा कर गडा कहकर गया )

माधव---दीक्षित जी! क्या कहीं बहरी ओर चलिएगा?

गोपाल---( दीक्षित से ) हाँ गुरु, चलिए आज बड़ी वहाँ लहरा है।

बुभु०---भाई बहरीवर मी जाऊन इकडचा बंदोबस्त कोण करील?

गोपाल---गुरु इतके १५ ब्राह्मणांत घबड़ावता। सर्वभक्षास साँगीतले ब्राह्मण जे झाले। श्राज न्यूफांड की पत्ती है।