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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२८९

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प्रेमजोगिनी

गप्प पंडित---क्या परोपकारी की पत्ती है? खाली पत्ती दी है कि और भी कुछ है? नाहीं तो मैं भी चलूँ।

माधव शास्त्री---पत्ती क्या बड़ी-बड़ी लहरा है, एक तो बड़ा भारी प्रदर्शन होगा और नाना रीति के नाच, नए-नए रंग देख पड़ेंगे।

गप्प पंडित---क्यो शास्त्री जी, मुझे यह बड़ा आश्चर्य ज्ञात होता है और इस से परिहासोक्ति सी देख पड़ती है। क्योकि उसके यहाँ नाच-रंग होना सूर्य का पश्चिमाभिमुख उगना है।

गोपाल---पंडितजी! इसी कारण इनका नाम न्यू फांड है। और तिस पर यह एक गुह्य कारण से होता है। वह मैं और कभी आप से निवेदन करूँगा, वा मार्ग में---

बुभु०---( सर्वभक्ष नाम अपने लड़के को सब व्यवस्था कहकर आप पान-पलेती और रस्सी-लोटा और एक पंखी लेकर )हाँ भाई मेरी सब तैयारी है।

माधव, गोपाल---चलिए पंडितजी, वैसे ही धनतुंदिल शास्त्री जी के यहाँ पहुँचेंगे। ( सब उठकर बाहर आते हैं )

चंबूभट्ट---मैं तो भाई जाता हूँ क्योकि संध्या समय हुआ।

[ चला जाता है

गप्प पंडित---किधर जाना पड़ेगा?