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भारतेंदु-नाटकावली

माधव शास्त्री---शंखोद्धारा क्योंकि आजकल श्रावण मास में और कहाँ लहरा? घराऊ कजरी, श्लोक, लावनी, ठुमरी, कटौवल, बोली-ठोली सब उधर ही।

गप्प पंडित---ठीक शास्त्रीजी, अब मेरे भ्यान में पहुँचा, आज- काल शंखोद्धारा का बड़ा माहात्म्य है। भला घर पर यह अब कहाँ सुनने में आवेगा? क्योंकि इसमें घराऊ विशेषण दिया है।

गोपाल---आ: हमारा माधव शास्त्री जहाँ है वहाँ सब कुछ ठीक ही होगा, इसका परम आश्रय प्राणप्रिय रामचंद्र बाबू आप को विदित है कि नहीं? उसके यहाँ ये सब नित्य कृत्य हैं।

गप्प पंडित---रामचंद्र हम ही को क्या परंतु मेरे जान प्रायः यह जिसको विदित नहीं ऐसा स्वल्प ही निकलेगा। विशेष करके रसिको को; उसको तो मैं खूब जानता हूँ।

गोपाल---कुछ रोज हमारे शास्त्री जी भी थे, परंतु हमारा क्या उनका कहिए ऐसा दुर्भाग्य हुआ कि अब वर्ष-वर्ष दर्शन नहीं होने पाता। रामचंद्र जी तो इनको अपने भ्राता के समान पालन करते थे और इनसे बड़ा प्रेम रखते थे। अस्तु सारांश पंडित जी वहाँ रामचंद्र जी के बगीचे में जायँगे। वहाँ सब लहरा देख पड़ेगी और इस मिस से तो भी उनका दर्शन होगा।