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भारतेंदु-नाटकावली
और हम लोग बातों ही से नहीं सुलझे। तो अब मारिष! चलो, हम लोग भी अपना-अपना वेष धारण करें।
पारि०---क्षण भर और ठहरो, मुझे शुकदेव जी के इस वेष की शोभा देख लेने दो, तब चलूँगा।
सूत्र०---सच कहा, अहा कैसा सुंदर बना है, वाह मेरे भाई वाह! क्यों न हो, आखिर तो मुझ रंगरंजक का भाई है।
अति कोमल सब अंग रंग सॉवरो सलोना।
घूँघरवाले बालन पै बलि वारौं टोना॥
भुज बिसाल, मुख चंद झलमले, नैन लजौहैं।
जुग कमान सी खिंची गड़त हिय में दोउ भौहैं॥
छबि लखत नैन छिन नहिं टरत शोभा नहिं कहि जात है।
मनु प्रेमपुंज ही रूप धरि आवत आजु लखात है॥
तो चलो, हम भी अपने-अपने स्वाँग सजकर आवें।
( दोनों जाते हैं )