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भारतेंदु-नाटकावली

( दासी आकर )

दासी---अरी, मैया खीझ रही है के वाहि घर के कछू और हू काम-काज हैं के एक हाहा ठीठी ही है, चल उठि, भोर सों यहीं पड़ी रही।

चंद्रा०---चल आऊँ, बिना बात की बकवाद लगाई। ( ललिता से ) सुन सखी, इसकी बातें सुन, चल चलें। ( लंबी सॉस लेकर उठती है )

( तीनों जाती हैं )

स्नेहालाप नामक पहिला अंक समाप्त।