पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१२
भारतेंदु-नाटकावली

व०---कहा काज है?---

चंदा०---पियारे सो मिलन मोहि काम है॥

व०---मैं हूँ कौन बोल तौ?---

चंद्रा०---हमारे प्रानप्यारे हो न?---

व०---तू है कौन?---

चंद्रा०---पीतम पियारे मेरो नाम है।

संध्या---( आश्चर्य से ) पूछत सखी कै एकै उत्तर बतावति जकी सी एक रूप आज श्यामा भई श्याम है॥

( बनदेवी आकर चंद्रावली की पीछे से अँखि बंद करती है )

चंद्रा०---कौन है कौन है?

बन०---मैं हूँ।

चंद्रा०---कौन तू है?

बन०---( सामने आकर ) मैं हूँ, तेरी सखी वृंदा।

चंद्रा०---तो मैं कौन हूँ?

बन०---तू तो मेरी प्यारी सखी चंद्रावली है न? तू अपने हू को भूल गई।

चंद्रा०---तो हम लोग अकेले बन में क्या कर रही है?

बन०---तू अपने प्राणनाथै खोजि रही है न?

चंद्रा०---हा! प्राणनाथ! हा! प्यारे! प्यारे अकेले छोड़के कहाँ चले गए? नाथ! ऐसी ही बदी थी! प्यारे यह धन इसी