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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३२६

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श्रीचंद्रावली

बिरह का दुःख करने के हेतु बना है कि तुम्हारे साथ बिहार करने को? हा!

जो पै ऐसिहि करन रही।
तो फिर क्यों अपने मुख सों तुम रस की बात कही॥
हम जानी ऐसिहि बीतैगी जैसी बीति रही।
सो उलटी कीनी बिधिना ने कछू नाहिं निबही॥
हमैं बिसारि अनत रहे मोहन औरै चाल गही।
'हरीचंद' कहा को कहा वै गयो कछु नहिं जात कही॥

( रोती है )

बन०---( आँखों में आँसू भरके ) प्यारी! अरी इतनी क्यों घबराई जाय है, देख तो यह सखी खड़ी हैं सो कहा कहैंगी।

चंद्रा०---ये कौन हैं?

बन०---( वर्षा को दिखाकर ) यह मेरी सखी वर्षा है।

चंद्रा०---यह वर्षा है तो हा! मेरा वह आनंद का धन कहाँ है? हा! मेरे प्यारे! प्यारे कहाँ बरस रहै हौ? प्यारे गरजना इधर और बरसना और कहीं?

बलि सॉवरी सूरत मोहनी मूरत
ऑखिन को कबौं आइ दिखाइए।
चातक सी मरै प्यासी परीं
इन्हैं पानिप रूप सुधा कबौं प्याइए॥