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भारतेंदु-नाटकावली
क्यौं परतिज्ञा करी रह्यौ जो ऐसो उलटो काज।
पहिले तो अपनाइ न आवत तजिबे में अब लाज॥
चलो हटो बड़े झूठे हो।
आओ मेरे मोहन प्यारे झूठे।
अपनी टारि प्रतिज्ञा कपटी उलटे हम सो रूठे॥
मति परसौ तन रँगे और के रंग अधर तुव जूठे।
ताहू पै तनिकौ नहिं लाजत निरलज अहो अनूठे॥
पर प्यारे बताओ तो तुम्हारे बिना रात क्यो इतनी बढ़ जाती है?
काम कछु नहिं यासों हमैं,
सुख सों जहाँ चाहिए रैन बिताइए।
पै जो करें बिनती 'हरिचन्द जू'
उत्तर ताको कृपा कै सुनाइए॥
एक मतो उनसों क्यों कियो तुम
सोऊ न आवै जो आप न आइए।
रूसिबे सों पिय प्यारे तिहारे
दिवाकर रूसत है क्यों बताइए॥
जाओ जाओ मैं नहीं बोलती। ( एक वृक्ष की आड़ में दौड़ जाती है)
तीनों---भई यह तो बावरी सी डोले, चलो हम सब वृक्ष की छाया में बैठें। ( किनारे एक पास ही तीनों बैठ जाती हैं )