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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३३८

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तीसरा अंक

स्थान-तालाब के पास एक बगीचा

( समय तीसरा पहर, गहिरे बादल छाए हुए )

[ झूला पड़ा है, कुछ सखी भूलती, कुछ इधर-उधर फिरती हैं ]

( चंद्रावली माधवी, काममंजरी, विलासिनी इत्यादि एक स्थान पर बैठी हैं, चंद्रकांता, वल्लभा, श्यामला, भामा झूले पर हैं, कामिनी और माधुरी हाथ में हाथ दिए घूमती हैं। )

कामिनी---सखी, देख बरसात भी अब की किस धूमधाम से आई है मानो कामदेव ने अबलाओ को निर्बल जानकर इनके जीतने को अपनी सेना भिजवाई है। धूम से चारों ओर से घूम-घूमकर बादल परे के परे जमाए बगपंगति का निशान उड़ाए लपलपाती नंगी तलवार सी बिजली चमकाते गरज-गरज कर डराते बान के समान पानी बरखा रहे हैं और इन दुष्टों का जी बढ़ाने को मोर बरखा सा कुछ अलग पुकार-पुकार गा रहे हैं। कुल की मऱजाद ही पर इन निगोड़ों की चढ़ाई है। मनोरथों से कलेजा उमगा आता है अौर काम की उमंग जो अंग-अंग