पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३५

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हुए। एकाएक दूसरी जनवरी से बीमारी बढ़ने लगी। दवा इलाज सब कुछ होता था पर रोग बढ़ता ही जाता था। माघ कृष्ण ६ सं॰ १९४१ वि॰ (६ जनवरी सन् १८८५ ई॰) को आपका देहावसान हो गया। आपकी अवस्था उस समय चौंतीस वर्ष ३ महीने २७ दिन की थी।

भारतेन्दु जी के एक पुत्री और दो पुत्र हुए परन्तु दोनों पुत्र शैशवावस्था में ही जाते रहे। पुत्री का विवाह सं॰ १९३७ वि॰ के वैशाख मास (सन् १८८० की मई) में गोलोकवासी बुलाकीदास जी सोने वाले के भाई संतानेंबा॰ देवीप्रसाद जी के पुत्र स्वर्गीय बाबू बलदेवदास जी से भारतेन्दु जी ने स्वयम् किया था। इनका नाम श्रीमती विद्यावती जी था। इनके पाँच पुत्र तथा तीन पुत्रियाँ हुई थीं। एक पुत्री विवाह योग्य होकर तथा दो शैशवावस्था ही में काल कवलित हो गई। पुत्र पाँचों वर्तमान हैं।

नाटकों के सिवा उनकी अन्य रचनाओं के विषय में स्थानाभाव से यहाँ विशेष नहीं लिखा जा सकता; पर संक्षेप में काव्य, भाषा, पद्य आदि को लेकर सम्यक् रूप से दो-चार बातें लिखी जाती हैं। प्राचीन तथा आलोचनानवीन हिंदी-साहित्य के संघर्ष-काल में ऐसा सर्वतोमुखी प्रतिभावान साहित्यिक अपेक्षित था कि वह केवल प्राचीनता की खिल्लियाँ न उड़ाते हुए उसकी सार्थकता का नवीनता के साथ सामंजस्य करावे। ठीक ऐसे समय वैसे ही प्रतिभाशाली साहित्यिक के रूप में भारतेन्दु जी ने उदित होकर यह कार्य ऐसे सुचारु रूप से किया कि नए-पुराने का यह संघर्ष किसी को