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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३९७

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भारतेंदु-नाटकावली

मो गृह नीति सरूप काज सब करन सँवारी।
बेगि आउ रीनटी बिलंब न करु सुनि प्यारी॥

( नटी आती है )

नटी---आर्यपुत्र*! मैं आई, अनुग्रहपूर्वक कुछ आज्ञा दीजिए।

सूत्र०---प्यारी, आज्ञा पीछे दी जायगी, पहिले यह बता कि आज ब्राह्मणों का न्यौता करके तुमने इस कुटुंब के लोगों पर क्यो अनुग्रह किया है? या आप ही से आज अतिथि लोगों ने कृपा किया है कि ऐसे धूम से रसोई चढ़ रही है?

नटी---आर्य! मैंने ब्राह्मणों को न्यौता दिया है।

सूत्र०---क्यों? किस निमित्त से?

नटी---चंद्रग्रहण लगने वाला है।

सूत्र०---कौन कहता है?

नटी---नगर के लोगो के मुँह सुना है।

सूत्र०---प्यारी! मैंने ज्योतिःशास्त्र के चौंसठो अंगो में बड़ा परिश्रम किया है। जो हो, रसोई तो होने दो पर आज तो गहन है यह तो किसी ने तुझे धोखा ही दिया है क्योंकि---

चंद्र बिंब पूर न भए क्रूर केतु हठ दाप॥


संस्कृत मुहाविरे में पति को स्त्रियाँ आर्यपुत्र कहकर पुकारती हैं।

होरा मुहूर्त जातक ताजक रमल इत्यादि।

अर्थात् ग्रहण का योग तो कदापि नहीं है। खैर रसोई हो।

केतु अर्थात् राक्षस मंत्री। राक्षस मंत्री ब्राह्मण था और केवल नाम उसका राक्षस था किंतु गुण उसमें देवताओं के थे।

इस श्लोक का यथार्थ तात्पर्य्य जानने को काशी संस्कृत विद्यालय