शिष्य---महाराज! इस दालान में बेंत की चटाई पहिले ही से बिछी है, आप बिराजिए।
चाणक्य---बेटा! केवल कार्य में तत्परता मुझे व्याकुल करती है, न कि और उपाध्यायों के तुल्य शिष्यजन से दुःशीलता*। ( बैठकर आप ही आप ) क्या सब लोग यह बात जान गए कि मेरे नंदवंश के नाश से क्रुद्ध होकर राक्षस, पितावध से दुखी मलयकेतु से मिलकर यवनराज की सहायता लेकर चंद्रगुप्त पर चढ़ाई किया चाहता है। ( कुछ सोचकर ) क्या हुआ, जब मैं नंदवंश-वध की बड़ी प्रतिज्ञारूपी नदी से पार उतर चुका, तब यह बात प्रकाश होने ही से क्या मैं इसको न पूरा कर सकूँगा? क्योंकि---
दिसि सरिस रिपु-रमनी बदन-शशि शोक कारिख लाय कै।
लै नीति-पवनहि सचिव-बिटपन छार डारि जराय कै॥
बिनु पुर निवासी पच्छिगन नृप बंसमूल नसाय कै।
भो शांत मम क्रोधाग्नि यह कछु दहन हित नहिं पाय कै॥
और भी
जिन जनन ने अति सोच सों नृप-भय प्रगट धिक नहिं कह्यो।
- अर्थात् कुछ तुम लोगों पर दुष्टता से नहीं, अपने काम की,
घबराहट से बिछी हुई चटाई नहीं देखी।
नंदवंश अर्थात् नव नंद---एक नंद और उसके आठ पुत्र।
पर्वतेश्वर राना का पुत्र।
अग्नि बिना आधार नहीं जलती।