प्रतिहारी---जो आज्ञा। ( बाहर से पत्र लाकर देती है )
चाणक्य---वृषल, सुनो।
चंद्र---मैं उधर ही कान लगाए हूँ।
चाणक्य---( पढ़ता है ) स्वस्ति परम प्रसिद्ध नाम महाराज श्री चंद्रगुप्त देव के साथी जो अब उनको छोड़ कर कुमार मलयकेतु के आश्रित हुए हैं उनका यह प्रतिज्ञापत्र है। पहिला गजाध्यक्ष भद्रभट, अश्वाध्यक्ष पुरुषदत्त, महाप्रतिहार चंद्रभानु का भानजा हिंगुरात, महाराज के नातेदार महाराज बलगुप्त, महाराज के लड़कपन का सेवक राजसेन, सेनापति सिंहबलदत्त का छोटा भाई भागुरायण, मालव के राजा का पुत्र रोहिताक्ष और क्षत्रियो में सबसे प्रधान विजयवर्मा ( आप ही आप ) ये हम सब लोग यहाँ महाराज का काम सावधानी से साधते हैं ( प्रकाश ) यही इस पत्र में लिखा हैं। सुना?
चंद्र०---आर्य! मैं इन सबों के उदास होने का कारण सुनना चाहता हूँ।
चाणक्य---वृषल! सुनो---वे जो गजाध्यक्ष और अश्वाध्यक्ष थे वे रात-दिन मद्य, स्त्री और जुआ में डूबकर अपने काम से निरे बेसुध रहते थे। इससे मैंने उनसे अधिकार लेकर केवल निर्वाह के योग्य जीविका कर दी थी, इससे