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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४६२

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मुद्राराक्षस

उदास होकर कुमार मलयकेतु के पास चले गए और वहाँ अपना-अपना कार्य सुनाकर फिर उसी पद पर नियुक्त हुए हैं, और हिंगुरात और बलगुप्त ऐसे लालची हैं कि कितना भी दिया पर अंत में मारे लालच के कुमार मलयकेतु के पास इस लोभ से जा रहे कि यहीं बहुत मिलेगा, और जो आपका लड़कपन का सेवक राजसेन था उसने आपकी थोड़ी ही कृपा से हाथी, घोड़ा, घर और धन सब पाया, पर इस भय से भागकर मलयकेतु के पास चला गया कि यह सब छिन न जाय, और वह जो सिंहबलदत्त सेनापति का छोटा भाई भागुरायण है उससे पर्वतक से बड़ी प्रीति थी सो उसने कुमार मलयकेतु से यह कहा कि "जैसे विश्वासघात करके चाणक्य ने तुम्हारे पिता को मार डाला वैसे ही तुम्हे भी मार डालेगा, इससे यहाँ से भाग चलो", ऐसे ही बहकाकर कुमार मलयकेतु को भगा दिया और जब आपके बैरी चंदनदासादिकों को दंड हुआ तब मारे डर के मलयकेतु के पास जा रहा। उसने भी यह समझ कर कि इसने मेरे प्राण बचाए और मेरे पिता का परिचित भी है उसको कृतज्ञता से अपना अंतरंगी मंत्री बनाया है, और वे जो रोहिताक्ष और विजयवर्मा थे वे ऐसे अभिमानी थे कि जब आप उनके और नातेदारो का आदर करते थे तब वह कुढ़ते थे,