पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४६६

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मुद्राराक्षस

वह ऊपरी जोड़-तोड़ लगावे पर उनके मिटाने में इतनी कठिनाई न हो। इससे उसके जाने के समय उपेक्षा कर दी गई।

चंद्र०---तो जब वह यहाँ था तभी उसको वश में क्यों नहीं कर लिया?

चाणक्य---वश क्या कर लें, अनेक उपायों से तो वह छाती में गड़े कॉटे की भाँति निकालकर दूर किया गया है! उसे दूर करने में और कुछ प्रयोजन ही था।

चंद्र०---तो बल से क्यों नहीं पकड़ रखा?

चाणक्य---वह राक्षस ऐसा नहीं है, उस पर जो बल किया जाता तो या तो वह आप मारा जाता या तुम्हारी सेना का नाश कर देता।

और---

हम खोवै इक महत नर जो वह पावै नास।
जो वह नासै सैन तुव तौहू जिय अति त्रास॥
तासों कल बल करि बहुत अपने बस करि वाहि।
जिमि गज पकरै सुघर तिमि बाँधैंगे हम ताहि॥

चंद्र०---मैं आप की बात तो नहीं काट सकता, पर इससे तो मंत्री राक्षस ही बढ़-चढ़ के जान पड़ता है।

चाणक्य---( क्रोध से ) 'आप नहीं' इतना क्यों छोड़ दिया? ऐसा कभी नहीं है। उसने क्या किया है कहो तो?