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भारतेंदु-नाटकावली

सिद्धा०---( मलयकेतु के पैरों पर गिरकर ) कुमार! हमको अभय-दान दीजिए।

मलय०---भद्र! उठो, शरणागत जन यहाँ सदा अभय हैं। तुम इसका वृत्तांत कहो।

सिद्धा--( उठकर ) सुनिए। मुझको अमात्य राक्षस ने यह पत्र देकर चंद्रगुप्त के पास भेजा था।

मलय०---जबानी क्या कहने को कहा था वह कहो।

सिद्धा०---कुमार! मुझको अमात्य राक्षस ने यह कहने को कहा था कि मेरे मित्र कुलूत देश के राजा चित्रवर्मा, मलयाधिपति सिंहनाद, कश्मीरेश्वर पुष्कराक्ष, सिंधु-महाराज सिंधुसेन और पारसीक-पालक मेघाक्ष इन पाँच राजाओं से आपसे पूर्व में संधि हो चुकी है। इसमें पहिले तीन तो मलयकेतु का राज चाहते हैं और बाकी दो खजाना और हाथी चाहते हैं। जिस तरह महाराज ने चाणक्य को उखाड़कर मुझको प्रसन्न किया उसी तरह इन लोगों को भी प्रसन्न करना चाहिए। यही राजसंदेश है।

मलय०---( आप ही आप ) क्या चित्रवर्मादिक भी हमारे द्रोही हैं? तभी राक्षस में उन लोगों की ऐसी प्रीति है। ( प्रकाश ) विजये! हम अमात्य राक्षस को देखा चाहते हैं।

प्रति०---जो आज्ञा।

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