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भारतेंदु-नाटकावली
लोग चांडाल का वेष बनाकर चन्दनदास को वधस्थान में ले चलें।
( दोनों जाते हैं )
इति प्रवेशक
स्थान---बाहरी प्रांत में प्राचीन बारी
( फाँसी हाथ में लिए हुए एक पुरुष आता है )
पुरुष--
षट गुन सुदूढ गुथी मुख फॉसी।
उपाय परिपाटी गॉसी॥
रिपु-बंधन मैं पटु प्रति पोरी।
जय चाणक्य नीति की डोरी॥
आर्य चाणक्य के चर उंदुर ने इसी स्थान में मुझको अमात्य राक्षस से मिलने को कहा है। ( देखकर ) यह अमात्य राक्षस सब अंग छिपाए हुए आते हैं। तब तक इस पुरानी बारी में छिपकर हम देखे कि यह कहाँ ठहरते हैं। ( छिपकर बैठता है )
( सब अंग छिपाए हुए राक्षस आता है )
राक्षस---( आँखो में ऑसू भर के ) हाय! बड़े कष्ट की बात है
आश्रय बिनसे और पै जिमि कुलटा तिय जाय।
तजि तिमि नंदहि चञ्चला चंद्रहि लपटी धाय॥
देखादेखी प्रजहु सब कीनो ता अनुगौन।
तजि कै निज नृप-नेह सब कियो कुसुमपुर भौन॥