ये और पंजाब से लेकर गुजरात दक्षिण तक के हिंदू मगध देश में जाकर प्राणत्याग करना बड़ा पुण्य समझते थे। प्रजापाल नामक एक राजा ने सन् १४०० के लगभग बीस बरस मगध देश को स्वतंत्र रखा। किंतु आर्य्यमत्सरी दैव ने यह स्वतंत्रता स्थिर नहीं रखी और पुण्यधाम गया फिर मुसलमानों के अधिकार में चला गया। सन् १४७८ तक यह प्रदेश जौनपुर के बादशाह के अधिकार में रहा। फिर बहलूलवंश ने इसको जीत लिया था, किंतु १४९१ में हुसेनशाह ने फिर
से थोडी दूर दक्खिन बाजार के पूरब ओर सूर्यकुंड का तालाब है। इस तालाब से सटा हुआ और एक कच्चा तालाब है उसमें कमल बहुत फूलते हैं। देव राजधानी है। यहाँ के राजा महाराजा उदयपुर के घराने के मडियार राजपूत हैं। इस घराने के लोग सिपाहगरी के काम मे बहुत प्रसिद्ध होते आए हैं। यहाँ के महाराज श्रीजयप्रकाशसिह के० सी० एस० आई० बड़े शूर सुशील और उदार मनुष्य थे। यहाँ से दो कोस दक्खिन कंचनपुर में राजा साहिब का बाग और मकान देखने लायक बना है। देव से तीन कोस पूरब उमगा एक छोटी सी बस्ती है, उसके पास पहाड के ऊपर देव के सूर्यमंदिर के ढङ्ग का एक महादेव का मदिर है। पहाड के नीचे एक टूटा गढ़ भी देख पडता है। जान पडता है कि पहले राजा देव के घराने के लोग यहाँ ही रहते थे, पीछे देव में बसे। देव और उमगा दोनों इन्हीं की राजधानी थी, इससे दोनों नाम साथ ही बोले जाते हैं ( देवमूँगा )। तिल-सक्राति को उमगा में बडा मेला लगता है।" इससे स्पष्ट हुआ कि उदयपुर से जो राणा लोग आए उन्ही के खानदान में देव के राजपूत हैं। और बिहारदर्पण से भी यह बात पाई जाती है कि मड़ियार लोग मेवाड से आए हैं।