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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६१४

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भारतेंदु-नाटकावली


भठि॰––(आँखें नचाकर) तो मैं भी तो मियाँ की खिदमत से किसी तरह बाहर नहीं हूँ।

(दोनों गाते हैं)

पिकदानो चपरट्‌टू है बस नाम हमारा।
इक मुल्क का खाना है सदा काम हमारा॥
उमरा जो कहैं रात तो हम चाँद दिखा दें।
रहता है सिफारिश से भरा जाम हमारा॥
कपड़ा किसी का खाना कहीं सोना किसी जा।
गैरों ही से है सारा सरंजाम हमारा॥
हो रंज जहाँ पास न जाएँ कभी उसके।
आराम जहाँ हो है वहाँ काम हमारा॥
जर दीन है कुरआन है ईमाँ है नबी है।
जर ही मेरा अल्लाह है जर राम हमारा॥

भठि॰––ले मैं तो मियाँ के वास्ते खाना बनाने जाती हूँ।

पीक॰––तो चलो भाई हम लोग भी तब तक जरा 'रहे लाखों बरस साकी तेरा आबाद मैखाना'।

चपर॰––चलो।

(जवनिका पतन)