पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६१५

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पाँचवाँ दृश्य
स्थान––सूर्य्यदेव के डेरे का बाहरी प्रांत
[रात्रि-समय देवीसिंह सिपाही पहरा देता हुआ घूमता है]
(नेपथ्य में गान)
(राग कलिंगड़ा)

सोओ सुख-निंदिया प्यारे ललन।
नैनन के तारे दुलारे मेरे बारे,
सोओ सुख-निंदिया प्यारे ललन।
भई आधी रात बन सनसनात,
पथ पंछी कोउ आवत न जात,
जग प्रकृति भई मनु थिर लखात,
पातहु नहिं पावत तरुन हलन॥
झलमलत दीप सिर धुनत आय,
मनु प्रिय पतंग हित करत हाय,
सतरात अंग आलस जनाय,
सन-सन लगी सीरी पवन चलन।
सोए जग के सब नींद घोर,
जागत कामी चिंतित चकोर,
बिरहिन बिरही पाहरू चोर,
इन कहँ छन रैन हूँ हाय कल न॥