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भारतेंदु-नाटकावली


सिपाही––बरसों घर छूटे हुए। देखें कब इन दुष्टो का मुँह काला होता है। महाराज घर फिरकर चलें तो देस फिर से बसे। रामू की माँ को देखे कितने दिन हुए। बच्चा की तो खबर तक नहीं मिली। (चौंककर ऊँचे स्वर से) कौन है? खबरदार जो किसी ने झूठमूठ भी इधर देखने का विचार किया। (साधारण स्वर से) हाँ––कोई यह न जाने कि देवीसिंह इस समय जोरू-लड़कों की याद करता है, इससे भूला है। क्षत्री का लड़का है। घर की याद आवे तो और प्राण छोड़कर लड़े। (पुकारकर) खबरदार। जागते रहना।

(इधर-उधर फिरकर एक जगह बैठकर गाता है)
(कलिंगडा)

प्यारी बिन कटत न कारी रैन।
पल छिन न परत जिय हाय चैन॥
तन पीर बढ़ी सब छुट्यो धीर,
कहि आवत नहिं कछु मुखहु बैन।
जिय तड़फड़ात सब जरत गात,
टप टप टपकत दुख भरे नैन॥
परदेस परे तजि देस हाय,
दुख मेटनहारो कोउ है न।