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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६१७

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नीलदेवी

सजि बिरह सैन यह जगत जैन,
मारत मरोरि मोहि पापी मैन॥
प्यारी बिन कटत न कारी रैन।

(नेपथ्य में कोलाहल)

कौन है! यह कैसा शब्द आता है! खबरदार।

(नेपथ्य में विशेष कोलाहल)

(घबड़ाकर) हैं! यह क्या है? अरे क्यों एक साथ इतना कोलाहल हो रहा है। बीरसिंह! बीरसिंह! जागो। गोविंदसिंह दौड़ो!

(नेपथ्य में बड़ा कोलाहल और मार-मार का शब्द। शस्त्र खींचे हुए अनेक यवनों का प्रवेश। अल्ला अकबर का शब्द। देवीसिंह का युद्ध और पतन। यवनों का डेरे में प्रवेश।)

(पटाक्षेप)