काजी––मगर मेरी राय है कि और गु्फ्तगू के पेश्तर शुक्रिया अदा किया जाय, क्योंकि जिस हकतआला की मिहरबानी से यह फतह हासिल हुई है सबके पहले उस खुदा का शुक्र अदा करना जरूर है।
सब––बेशक, बेशक।
(काजी उठकर सबके आगे घुटने के बल झुकता है और फिर अमीर आदि भी उसके साथ झुकते हैं)
काजी––(हाथ उठाकर) काफिर प मुसल्माँ को फतहयाब बनाया।
सब––(हाथ उठाकर) अलहम्द् उलिल्लाह।
काजी––की मेह्र बड़ी तूने य बस मेरे खुदाया।
सब––अलहम्द् उलिल्लाह।
काजी––सदके में नबी सैयदे मक्की मदनी के, अतफाले अली के, असहाब के, लश्कर मेरा दुश्मन से बचाया।
सब––अलहम्द् उलिल्लाह।
काजी––खाली किया इक आन में दैरों को सनम से, शमशीर दिखाके, बुतखानः गिरा करके हरम तू ने बनाया।
सब––अलहम्द् उलिल्लाह।
काजी––इस हिंद से सब दूर हुई कुफ़्र की जुल्मत, की तूने व रहमत, नक्कारए ईमाँ को हरेक सिम्त बजाया।
सब––अलहम्द् उलिल्लाह।