लेते हैं? यदि कहिए कि दान देनेवाला गृह खाली कर और उसमें दान ही की वस्तुमात्र रखकर दान देता है तब दाता महाशय भी उस मकान में नहीं रहते और बाहर ही रहकर दान देकर रास्ता लेते हैं। राजा हरिश्चन्द्र अपनी राजधानी में खड़े होकर दान दे रहे थे तथा पृथ्वी से अपने इस कार्य के लिए क्षमा याचना कर रहे थे कि दक्षिणा माँगने पर स्वभावानुसार मंत्री को मुद्रा लाने के लिये कह देते है। सत्य हरिश्चन्द्र में कई स्थानों पर एक सहस्र ही लिखा है पर वह छापे की अशुद्धि है क्योकि उन्हीं संस्करणों में बिक्री के समय अपना मूल्य राजा हरिश्चन्द्र ने पाँच सहस्र कहा था तथा चांडाल ने पचास सौ दिए भी थे। इस कारण ठीक पाठ दस सहस्र ही है।
काशी पहुँचने पर राजा हरिश्चन्द्र के काशी तथा गंगाजी का वर्णन करते और विश्वामित्र से बात चीत करते समय तक शैव्या तथा रोहिताश्व कहाँ थे। 'इसका संकेत करना आवश्यक है कि वह वहाँ नहीं थी।' शैव्या आदि न जाने कहाँ थी, अब तक इसी बात का पता नहीं था और अब आप लिखते है कि उनके वहाँ न रहने का संकेत करना आवश्यक है। चंडकौशिक का अनुवाद कहते हुए भी आप ही लिखते हैं कि उसमें इन बातों का लक्ष्य कराया गया है। दोनों ही कैसे हो सकता है।
दूसरे अंक के अंत में जो दोहा है उससे यह स्पष्ट ही ध्वनित हो रहा है कि स्त्री-पुत्र सहित अपने को बेचकर दक्षिणा चुका देगे। इससे काशी में उनका बिकने के लिए साथ आना सभी दर्शकों को मालूम हो गया। अंकावतार में भी इतना स्पष्ट रूप