पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६५०

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अंधेर-नगरी

(बाबाजी का चेला गोबरधनदास पाता है और सब बेचनेवालों की आवाज सुन-सुनकर खाने के आनंद में बडा प्रपन्न होता है)

गोबरधन०––क्यों भाई बनिये, आटा कितने सेर?

बनियाँ––टके सेर।

गोबरधन०––औ चावल?

बनियाँ––टके सेर।

गोबरधन०––औ चीनी?

बनियाँ––टके सेर।

गोबरधन०––औ धी?

बनिया––टके सेर।

गोबरधन––सब टके सेर! सचमुच।

बनियाँ––हॉ महाराज, क्या झूठ बोलूँगा?

गोबरधन०––(कुंजड़िन के पास जाकर) क्यो माई, भाजी क्या भाव?

कुंजडिन––बाबाजी, के सेर। निनुआ मुरई धनियाँ मिरचा साग सब टके सेर।

गोबरधन०––सब भाजी टके सेर! वाह-वाह! बड़ा आनंद है। यहाँ सभी चीज टके सेर। (हलवाई के पास जाकर) क्यों भाई हलवाई! मिठाई कितने सेर?

हलवाई––बाबाजी! लडुआ हलुआ जलेबी गुलाबजामुन खाजा सब टके सेर।