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भारतेंदु-ग्रंथावली

गोबरधन०––वाह! वाह!! बड़ा आनंद है। क्यों बच्चा, मुझसे मसखरी तो नहीं करता? सचमुच सब टके सेर?

हलवाई––हाँ बाबाजी, सचमुच सब टके सेर। इस नगरी की चाल ही यही है। यहाँ सब चीज टके सेर बिकती है।

गोबरधन०––क्यों बच्चा! इस नगरी का नाम क्या है? हलवाई-अंधेरनगरी।

गोबरधन०––और राजा का क्या नाम है?

हलवाई––चौपट्ट राजा।

गोबरधन०––वाह! वाह! अंधेर नगरी चौपट्ट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा। ( यही गाता है और प्रानंद से बगल बजाता है)

हलवाई––तो बाबाजी, कुछ लेना-देना हो तो लो-दो।

गोबरधन०––बच्चा, भिक्षा मांगकर सात पैसे लाया हूँ, साढ़े तीन सेर मिठाई दे दे, गुरु-चेले सब आनंदपूर्वक इतने में छक जायँगे।

(हलवाई मिठाई तौलता है––बाबाजी मिठाई लेकर खाते हुए और अंधेरनगरी गाते हुए जाते हैं)

(जवनिका गिरती है)