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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६५५

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चौथा अंक

स्थान––राजसभा
(राजा, मंत्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित है)

एक सेवक––(चिल्लाकर) पान खाइए, महाराज।

राजा––(पीनक से चौंक के घबड़ाकर उठता है) क्या कहा? सुपनखा आई ए महाराज। (भागता है)।

मंत्री––(राजा का हाथ पकड़कर) नहीं नहीं, यह कहता है कि पान खाइए महाराज।

राजा––दुष्ट लुच्चा पाजी। नाहक हमको डरा दिया। मंत्री इसको सौ कोड़े लगें। मंत्री-महाराज! इसका क्या दोष है? न तमोली पान लगाकर देता, न यह पुकारता।

राजा––अच्छा, तमोली को दो सौ कोड़े लगें।

मंत्री––पर महाराज, आप पान खाइए सुनकर थोड़े ही डरे हैं, आप तो सुपनखा के नाम से डरे हैं, सुपनखा की सजा हो।

राजा––(घबड़ाकर) फिर वही नाम? मंत्री तुम बड़े खराब आदमी हो। हम रानी से कह देंगे कि मंत्री बेर-बेर तुमको सौत बुलाने चाहता है। नौकर! नौकर! शराब––