पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६५६

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अंधेर-नगरी
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दूसरा नौकर––(एक सुराही में से एक गिलास में शराब उमलकर देता है) लीजिए महाराज। पीजिए महाराज।

राजा––(मुँह बना-बनाकर पीता है) और दे।

(नेपथ्य में––'दुहाई है दुहाई का शब्द होता है)

कौन चिल्लाता है-पकड़ लाभो।

(दो नौकर एक फर्यादी को पकड़ लाते हैं)

फ०––दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारा न्याव होय।

राजा––चुप रहो। तुम्हारा न्याव यहाँ ऐसा होगा कि जैसा जम के यहाँ भी न होगा––बोलो क्या हुआ?

फ०––महाराज! कल्लू बनियाँ की दीवार गिर पड़ी सो मेरी बकरी उसके नीचे दब गई। दोहाई है महाराज, न्याव हो।

राजा––(नौकर से) कल्लू बनिये की दीवार को अभी पकड़ लाओ।

मंत्री––महाराज, दीवार नहीं लाई जा सकती।

राजा––अच्छा, उसका भाई, लड़का, दोस्त, प्राशना जो हो उसको पकड़ लाओ।

मंत्री––महाराज! दीवार ईट-चूने की होती है, उसको भाई बेटा नहीं होता।

राजा––अच्छा, कल्लू बनिये को पकड़ लाभो। (नौकर