अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा॥
(बैठकर मिठाई खाता है)
––गुरुजी ने हमको नाहक यहाँ रहने को मना किया था। माना कि देस बहुत बुरा है, पर अपना क्या? अपने किसी राजकाज में थोड़े हैं कि कुछ डर है, रोज मिठाई चाभना, मजे में आनंद से रामभजन करना।
(मिठाई खाता है चार प्यादे चार ओर से आकर उसको पकड लेते हैं)
प० प्या०––चल बे चल, बहुत मिठाई खाकर मुटाया है। आज पूरी हो गई।
दू० प्याo––बाबाजी चलिए, नमोनारायन कीजिए।
गोबरधन०––(घबड़ाकर) हैं! यह आफत कहाँ से आई! अरे भाई, मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मुझको, पकड़ते हो?
प० प्या०––आपने बिगाड़ा है या बनाया है इससे क्या मतलब, अब चलिए। फॉसी चढ़िए।
गोबरधन०––फॉसी! अरे बाप रे बाप फॉसी! मैंने किसकी जमा लूटी है कि मुझको फॉसी! मैंने किसके प्राण मारे कि मुझको फाँसी!
दू० या––आप बड़े मोटे हैं, इस वास्ते फॉसी होती है।
गोबरधन०––मोटे होने से फॉसी? यह कहाँ का न्याय है! अरे, हँसी फकीरों से नहीं करनी होती।