पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६६२

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अंधेर-नगरी

प० प्या०––जब सूली चढ लीजिएगा तब मालूम होगा कि हँसी है कि सच। सीधी राह से चलते है। कि घसीट कर ले चलें?

गोबरधन०––अरे बाबा, क्यो बेकसूर का प्राण मारते हो? भग वान के यहाँ क्या जवाब दोगे?

प० प्या०––भगवान को जवाब राजा देगा। हमको क्या मतलब। हम तो हुक्मी बंदे हैं।

गोबरधन०––तब भी बाबा बात क्या है कि हम फकीर आदमी को नाहक फॉसी देते हो?

प० प्याo-बात यह है कि कल कोतवाल को फॉसी का हुकुम हुआ था। जब फॉसी देने को उसको ले गए, तो फॉसी का फंदा बड़ा हुआ, क्योंकि कोतवाल साहब दुबले है। हम लोगो ने महाराज से अर्ज किया, इस पर हुक्म हुअा कि एक मोटा आदमी पकड़ कर फॉसी दे दो, क्योकि बकरी मारने के अपराध में किसी न किसी को सजा होनी जरूर है, नहीं तो न्याय न होगा। इसी वास्ते तुमको ले जाते हैं कि कोतवाल के बदले तुमको फॉसी दें।

गोषरधन०––तो क्या और कोई मोटा आदमी इस नगर भर में नहीं मिलता जो मुझ अनाथ फकीर को फाँसी देते हैं?

प० प्या०––इसमें दो बात है––एक तो नगर भर में राजा के