पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

छठा अंक

स्थान––श्मशान

(गोबरधनदास को पकड़े हुए चार सिपाहियों का प्रवेश)

गोबरधन०––हाय बाप रे! मुझे बेकसूर ही फॉसी देते हैं। अरे भाइयो, कुछ तो धरम बिचारो! अरे मुझ गरीब को फॉसी देकर तुम लोगों को क्या लाभ होगा? अरे मुझे छोड़ दो। हाय! हाय! (रोता है और छुड़ाने का यत्न करता है)

प० सिपाही––अबे, चुप रह––राजा का हुकुम भला कहीं टल सकता है? यह तेरा आखरी दम है, राम का नाम ले–– बेफाइदा क्यो शोर करता है? चुप रह––

गोबरधन०––हाय! मैंने गुरुजी का कहना न माना, उसी का यह फल है। गुरुजी ने कहा था कि ऐसे नगर में न रहना चाहिए, यह मैंने न सुना! अरे! इस नगर का नाम ही अंधेरनगरी और राजा का नाम चौपट्ट है, तब बचने की कौन आशा है। अरे! इस नगरी में ऐसा कोई धर्मात्मा नहीं है जो इस फकीर को बचावे। गुरुजी कहाँ हो? बचाओ-बचाओ––गुरुजी––गुरुजी––