पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६८९

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पाँचवाँ दृश्य*[१]

बनदेवी और बनदेवता आते हैं


दोनों--(गाते हुए, पूरबी)

हम बनबासी हो रामा।

जाहिं न पास नगर के कबहीं सब से रहत उदासी हो रामा॥
फल भोजन फूलन के गहना गिरिकंदरा निवासी हो रामा।

जगत-जाल सों बचि हम बिहरत केवल प्रेम उपासी हो रामा॥


बनदेवी--(गाती हुई, पूरबी)

आओ प्यारे प्रान हमारे बैठो सीतल छाहीं हो।


बनदेवता--तुमहुँ थकीं ग्रीषम दुपहरिया चलौ दिये गलबाही हो॥

(दोनों एक कुंज के पास जाते हैं)


बनदेवी--यह रसाल की सीतल छाया तापर मालति छाई हो।


बनदेवता--वैसे तुमहू प्यारी मेरे कंठ रहो लपटाई हो॥

(दोनों कुंज में एक शिला पर बैठते हैं)


बनदेवी--देखहु प्यारे उपबन-सोभा कैसी छई लुनाई हो॥


बनगेवता--वासों बढ़ि तुव अंग अंग में प्यारी देत लखाई हो॥


  1. * भारतेंदु जी ने इस नाटक के केवल चार दृश्य लिखे थे, जिसे बा. राधाकृष्णदास ने बाद को पूरा किया था।