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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७२२

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गप्प पं०―(हिन्दी)

बुभु०―(हिन्दी)

चंबू भट्ट―(हिन्दी)

महाश―दीक्षित जी, बूटी तैयार हुई―अब जल्दी छने क्योंकि यह जीव बहुत प्यासा हो गया है और अभी बहुत से ब्राह्मणों के यहाँ कहने जाना है।

बुभु०―जरा छानो तो।

माधव शास्त्री―दीक्षित जी, यह मेरा काम नहीं, कारण मैं केवल अपने पीने का मालिक हूँ, मुझे छानना नहीं आता। (हिन्दी)

गोपाल०―अच्छा दीक्षित जी, मैं ही आता हूँ।

चंबू भट्ट―महाश आखिर हमारे दल के सहन भोजन में कितने ब्राह्मण और बसंत पूजा में कितने ब्राह्मण रहेंगे?

महाश―आज दीक्षित के दल के कुल २५ ब्राह्मण हैं। उनमें से १५ सहस्र भोजन में और १० बसंत पूजा में रहेंगे।

माधव शास्त्री―और सभा के? महाश―सभा के बारे में तो मैंने कह ही दिया कि धनतुंदिल शास्त्री के अधिकार में है और दो तीन दिन में वे उसका भी बंदोबस्त करेंगे।

गप्प पं०―(यहाँ से पृष्ठ १६७ में गप्प पंडित तक हिन्दी है)