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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/८५

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मगध पर अधिकार हो गया। इसके अनन्तर गिरिब्रज के शैशुनाग- वंशी राजाओ का मगध पर अधिकार हुआ। इस वंश का पहला प्रतापी राजा बिम्बसार गौतम बुद्ध और महावीर तीर्थंकर का समकालीन तथा अंग देश का विजेता था। इसका पुत्र अजातशत्रु बुद्ध के उपदेशों को सुनकर बौद्ध हो गया। इसने लिच्छिवियो पर विजय प्राप्त कर उन्हें दबाने को पाटलिपुत्र नामक दुर्ग बनवाया। यह इस वंश का प्रथम सम्राट् था। इसका उत्तराधिकारी दर्शक हुआ, जिसके अनन्तर उदयाश्व या उदायी राजा हुआ। इनके अनन्तर नन्दिवर्द्धन और महानन्दि नामक दो सम्राटों का उल्लेख है। महानंदि इस वंश का अन्तिम सम्राट था, जिसकी शूद्रा स्त्री से नन्द नामक पुत्र हुआ। इसने मगध राज्य पर अधिकार करके नन्द वंश स्थापित किया।

यह अठासी वर्ष राज्य कर मर गया। इसके अनन्तर बारह वर्ष तक इसके पुत्रो के हाथ में रहकर मगध राज्य मौर्यों के हाथ में चला गया। जिस समय चाणक्य नंदों से बिगड़ खड़ा हुआ, उसी समय के आसपास सिकंदर भारत में आया और चला गया। उस समय चंद्रगुप्त पंजाब में चक्कर लगा रहा था। सिकंदर की मृत्यु पर पंजाब के राजाओं ने यवनो के शासन के विरुद्ध विद्रोह किया और चंद्रगुप्त इन बलवाइयो का मुखिया बन बैठा। इसी समय चाणक्य ने चंद्रगुप्त को नंदो के विरुद्ध उभाड़ा और पंजाब के राजाओं की सहायता से तथा प्रांतरिक षड्चक्र द्वारा मगध राज्य पर अधिकार कर चंद्रगुप्त को प्रथम मौर्य सम्राट् बनाया।

चंद्रगुप्त ने अधिकार-प्राप्ति के अनंतर कोशल तक अपना