पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/८६

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राज्य बढ़ाया। वि० सं० २४० पू० में ग्रीक राजा सिल्यूकस निकेटोर चंद्रगुप्त से परास्त होकर लौट गया। इसके उपरांत सिल्यूकस ने मेगास्थनीज को अपना राजदूत बनाकर चन्द्रगुप्त के दरबार में रखा।

इस प्रकार चौबीस वर्ष निष्कंटक राज्य कर पचास वर्ष की अवस्था में सं० २४१ पू० के निकट चंद्रगुप्त की मृत्यु हुई। इसके अनंतर इसके पुत्र बिदुसार ने पच्चीस वर्ष राज्य किया और तब परम प्रसिद्ध अशोक भारतवर्ष का सम्राट् हुआ।

ग---ग्रंथ-परिचय

मुद्राराक्षस का स्थान संस्कृत साहित्य में बहुत ऊँचा है और अन्य नाटकों से भिन्न ऐतिहासिक तथा राजनीति-विषयक होने के कारण इसका कथावस्तु पुराण, महाभारत या रामायण से नहीं लिया गया है और न कोरो कपोल-कल्पना ही है। वह शुद्ध इतिहास से लिया गया है। नाटक का मुख्य उद्देश्य है चाणक्य द्वारा स्थापित प्रथम मौर्य सम्राट् चंद्रगुप्त की राज्यश्री की स्थिरता, जिसके लिये नंद वंश के पुराने स्वामिभक्त मंत्री राक्षस को, जो मौर्य वंश से शत्रु भाव रखता था, मिलाना ध्येय रखा गया। भाषा नाटक के विषयानुकूल है। यदि इसमें महाकवि कालिदास के नाटको का माधुर्य या सौन्दर्य ढूँढ़ा जाय तो अवश्य ही न मिलेगा पर उसका न मिलना ही इस नाटक की विशेषता है। इसकी भाषा ज़ोरदार तथा व्यावहारिक है और कहीं कहीं कुछ हास्यरस का भी पुट दिया गया है।

इस नाटक में एक विचित्रता यह है कि इसमें स्त्री पात्रों