पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/९३

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४ पृ० ३६९ ) और अंत में अविश्वास योग्य पुरुषों के कहने सुनने पर विश्वास कर उसने उन्हें निकाल भी दिया। इसमें चंद्रगुप्त के समान योग्यता नहीं थी। यह बिना विचार किए मनमाना कर बैठता था, जैसे कि पॉच राजाओं का मार डालना ( अंक० ५ पृ० ४०२ ) । दृढ प्रकृति का न होने से यह शत्रु के भेदियों की बातों में आ गया।

अन्य पात्रों में चन्दनदास मित्रस्नेह का आदर्श रूप है। धन-प्राण आदि सभी को तिलांजलि देकर इसने उसका निर्वाह किया। शकटदास ने भी मित्रता निबाही। भागुरायण ने मलयकेतु से स्नेह हो जाने पर भी स्वामिभक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा ( अं० ५ पृ० ३८३ ) । अन्य पात्रो में भी यह गुण वर्तमान था।

च---कथावस्तु

नाटक का कथावस्तु बड़ी सफलता तथा बुद्धिमानी से संगठित किया गया है और उसकी मुख्य घटनाएँ इस प्रकार हैं। प्रथम अंक---( १ ) राक्षस की मुहर की अँगूठी का दैवात् चाणक्य को मिल जाना ( २ ) शकटदास से जाली पत्र लिखवाना तथा उसको सन्देश सहित सिद्धार्थक को सौंपना ( ३ ) जीवसिद्धि का देशनिर्वासन, शकटदास का भागना तथा चन्दनदास का कैद होना। द्वितीय अंक---( ४ ) शकटदास का चाणक्य के चर सिद्धार्थक के साथ भागना और सिद्धार्थक का राक्षस की सेवा में नियुक्त हा होना ( ५ ) मलयकेतु के गहनो को सिद्धार्थक को देना और सिद्धार्थक का मुहर लौटाना ( ६ )