पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१००१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

YAR fe स्वरूप को पंचामृत स्नान कराना । घंटा शंख नौबतखाना बजाना । ब्रज भयो महर के पूत, यह पद गाना । जन्म पीछे श्री ठाकरजी को नई फूल की माला तिलक पीतांबर समर्पण करना । फिर यथाशक्ति महाभोग धरना । पंजीरी भोग । सवेरे नवमी को श्रीठाकुरजी को पालने पर सुलाना । दही से नंद महोत्सव करना. पालना के मोग में मेवा मिठाई मक्खन रखना, भेट आरती करना । भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया - दसठन का उत्सव । पंचमी - श्रीबलदेव जी का जन्म, श्रीचंद्रावती जी का जन्म । जहाँ दो स्वामिनी जी विराजती हों वहाँ दक्षिण भाग की स्वामिनी जी को दूध का स्नान, तिलक । अष्टमी - श्री राधाष्टमी, शूगार जन्माष्टमी का, श्री स्वामिनी जी को दूध से स्नान कराना, तिलक भोग आरती तोरण आदि जन्माष्टमी की भांति सब करना । एकादशी - दान एकादशी, मकुट काछनी का भूगार वस्त्र लाल, दही दूध खोटी छोटी कुल्हिया में भोग रखना, अब भक्त (सखी) हो तो उनके सिर पर दही दूध रखकर सामने खड़ी करना । द्वादशी - वामनजयंती, केसरिया वस्त्र, धोती उपरना, कुलह, दोपहर को पंचामृत । पूर्णिमा - सांझी के उत्सव का आरंभ, सांझ को ठाकुर जी के सामने फूल की वा रंग की सांझी बनाना। आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी- महीना का चौक । द्वादशी - श्री गो. गोपीनाथ जी का उत्सव । त्रयोदशी - श्री बाल कृष्ण जी का उत्सव । चतुर्दशी – कोट की आरती । पूर्णिमा - सांझी की समाप्ति । आश्विन शुक्ल पक्षा प्रतिपदा - नवराबारंभ, कुलह चंद्रिका । नवमी - नवरात्र की समाप्ति, कुलाह चंद्रिका, सफेद छापे का बागा, सामग्री । दशमी - विजयदशमी, सफेद जरी का बागा, पाग चंद्रिका, संध्या को जवार की कलगी घराना, तिलक, खंजर कमर में घराना, रावण वध के कीर्तन गाना । एकादशी - मुकुट । पूर्णिमा-महारास, सफेद ताश का बागा, मुकुट, आभरण सफेद रात को चांदनी में श्री ठाकुर जी विराजे, सफेद वस्तु भोग लगाना, रास के कीर्तन गाना । कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी वा एकादशी से हटरी बीपमाशिका आरंभ । त्रयोदशी- धन तेरस, हरी जरी का बागा । चतुर्दशी - रूप चतुर्दशी, बागा लाल वरी का। अमावस्या - दीपावली, सफेद ताश का बागा. कुलह चंद्रिका, रात को हटरी में बैठाना, सामने दीपावली, चौपड़, मड़हर, खिलोना आदि रखना । कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा – अन्नकूट, शूगार दीवाली का रहेगा । गोवर्धन की पूजा करके अन्नकूट का भोग रखना, जहाँ तक बन पड़े सामग्री समर्पण करना । द्वितीया - भाई दूइज, तिलक । अष्टमी - गोपाष्टमी। नवमी - अक्षयनवमी, गोविदाभिषेकोत्सव, परिक्रमा करना । एकादशी- प्रबोधिनी, अच्छे समय में ऊख के मंडप में पधराय कर जगाना. नया जाड़े का कपड़ा।

उत्सवावली ९५७