पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०१३

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था । फिर सर्वनियंता जगदीश्वर ने स्वशक्ति से प्रवेश पूर्वक उसको चैतन्य किया । यही यूनानियों के ऋषि केयस ने भी लिखा है । फिर परमात्मा ने अपनी प्रकृति रूपी परिणत शरीर से प्रजा उत्पन्न करने की इच्छा से चिंता किया कि 'कैसे सब होगा और यह चिंता करके पहिले जल होय यह कह कर आकाशादि क्रम से जल सृष्टि किया । ओल्ड सिस्टेम (बाइबिल) के जिनिसिस के प्रथम अध्याय को इस से, वहाँ भी यही है । फिर परमात्मा ने जल से ब्रहमा उत्पन्न किया उसने आकाश पृथ्वी स्वर्गादि निर्माण किया और महत्तत्व अहंकार गुण आदि की क्रम से सृष्टि हुई और उससे मनुष्य पशु पक्षी स्थावरादि उत्पन्न हुए। फिर प्राणविशिष्ट इंद्रादि देवगण और कम हेतुक पाषाणमय देवगण और साध्य नामक सूक्ष्म देवगण अग्निष्टोमादि यज्ञ बनाये गए। अंगरोजी और यूनानी फिलासिफी में इस बात की छाया देख लीजिये । फिर वेद क्रिया काल ग्रह उन्नत अवनत स्थान तप संतोष इच्छा आदि की सृष्टि हुई फिर कर्तव्य अकर्तव्य कर्म के विभाग के हेतु धर्म अधर्म की सृष्टि हुई । धर्म का फल सुख और अधर्म का दुःख (अब महाभारत के आदि पर्व में धर्म अधर्म की सृष्टि वर्णन इस मनु कथित सृष्टि की तुलना करके उससे मिल्टन के मृत्यु विषयक प्रस्ताव मिला कर पढ़ो ।) फिर पंच महाभूतों के सूक्ष्म अंश और स्थूल अंश से जगत की सृष्टि हुई । (मिल्टन की ५ वीं पुस्तक में स्वर्गच्युति के गल्प से इसे मिलाओ ।) फिर मानव सृष्टि हुई और आत्मा को उसके देहों में प्रवेश का अधिकार दिया गया और एक को छोड़ कर दूसरे में गमन का भी (इससे सिद्ध होता है कि Transmigration of soul के प्रगट कर्ता भी मनु ही हैं।) ऐसे ही संसार के सब देवता भी भारतवर्ष ही के देवगण की छाया हैं । मिनर्वा नाम्ना यूरोप की प्राचीन देवी हम लोगों की भगवती दुर्गा है । मिनर्वा इंद्र के कंधों से प्रगटी है यहाँ भी दुर्गा देवताओं के अंश (अंश कंधे को भी कहते हैं) से प्रादुर्भूत हुई हैं । मिनर्वा भी सब शस्त्रों को लिए जन्मी हैं और दुर्गा भी, मिनर्वा युद्ध की देवी है दुर्गा भी । मिनर्वा शनिश्चर से लड़ी है दुर्गा महिषासुर से (महिषासुर और शनैश्चर में सादृश्य यह है कि शनैश्चर महिषवाहन है और महिषासुर महिष रूप) मिनर्वा और दुर्गा दोनों सिंहवाहिनी है मिनर्वा के एक हाथ में भाला और दूसरे में मदुस का सिर है (यह मदुस शब्द मधु वा महिष से निकला होगा) और दुर्गा का भी यही ध्यान है । मिनर्वा का दूसरा ध्यान कटे सिर का मुकुट पहिने और सर्प लपेटे है और दुर्गा का भी । मिनर्वा को मुर्गे प्यारे हैं यहाँ देवी को भी कुक्कुट बलि दिया जाता है। अब अपेल्लो को लीजिए । यह हिंदुओं के श्री कृष्ण का चित्र है । इसका सूर्य में निवास है और यहाँ भी नारायण का सूर्य में निवास है । इस नाम के चार देवता थे और यहाँ भी श्रीकृष्ण के चार व्यूह है । उसने पाइथन नामक सर्प को मारा और यहाँ भी कालिया दमन हुआ । वहां वह शिल्प, औषध, गान, काव्य, और रस का देवता है और यहाँ भी । उसका ध्यान सुंदर युवा, लंबे केश और हाथ में कभी धनुष कभी वंशी लिये है और यहाँ भी । वह पर्वत पर नव मित्रों के साथ विहार करता था यहाँ गिरिराज पर नव गोपियों के साथ विहार है। वैसे ही जुपिटर इंद्र है । और इन दोनों को देवराजत्व प्राप्त है । यहाँ इस को अपने भाई टिटन्स का डर था वहां हिरण्य कशिपु का । इंद्र भी बड़ा लंपट है और जुपिटर भी । जुपिटर का ध्यान सोने के सिंहासन पर बिजली हाथ में लिये हुये मेघों में शासन करते हुए है, और यहाँ भी वज्रहस्त है । किंतु जुपिटर के चरित्र में श्रीकृष्ण के बहुत से चरित्र मिला दिये हैं। केवल यूरोप के मूर्तिपूजकों पर ही नहीं नये संप्रदाय वालों को भी यही दशा है । गेनिल (जिबरईल) गरुड़ का अपभ्रंश है और गरुड़ जैसे परमेश्वर के सबसे उत्तम पार्षदों में है वैसे ही जिबरईल उत्तम फरिश्तों २. यद्यपि यूरोप वालों ने हमारे देवताओं के चरित्र का बहुत अनुकरण किया है तथापि उसके देवताओं के वेश में बड़ा गड़बड़ है इससे वंश परंपरा को मिलान न कर के केवल चरित्र मात्र का यहाँ उदाहरण दिया है । ३. दिव धातु से देववाची शब्द संसार में प्रसिद्ध है । भारत के इंद्र देव व देवेंद्र और यूनान में दिवस वा जियस । दोनों वज्रपाणि वारिदाता दांभिक पर्वत वासी और विलाससुखभोगी और एक वृत्रदानवहन्ता दूसरे टाइटस-दानव हन्ता । ईशू खूष्ट वा ईश कृष्ण ९६९