पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०२७

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स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन स्वामी दयानंद सरस्वती और बाबू केशवचंद्रसेन के स्वर्ग में जाने से वहाँ एक बेर बड़ा आंदोलन हो गया । स्वर्गवासी लोगों में बहुतेरे तो इनसे घृणा करके धिक्कार करने लगे और बहुतेरे इनको अच्छा कहने लगे । स्वर्ग में भी 'कंसरवेटिव' और 'लिबरल' दो दल हैं । जो पुराने जमाने के ऋषिमुनि यज्ञ कर करके या तपस्या करके अपने अपने शरीर को सुखा सुखा कर और पच पच कर मरके स्वर्ग गए हैं उनके आत्मा का दल 'कंसरवेटिव' है, और जो अपनी आत्माही की उन्नति से वा और किसी अन्य सार्वजनिक उच्च भाव संपादन करने से या परमेश्वर की भक्ति से स्वर्ग में गए हैं वे 'लिबरल' दलभक्त हैं । वैष्णव दोनों दल के क्या दोनों से खारिज थे, क्योंकि इनके स्थापकगण तो लिवरल दल के थे किंतु अब ये लोग 'रेडिकल्स' क्या महा महा रेडिकल्स को गए हैं । विचारे बूढ़े व्यासदेव को दोनों दल के लोग पकड़ पकड़ कर ले जाते और अपनी अपनी सभा का 'चेयरमैन' बनाते थे, और बेचारे व्यासजी भी अपने प्राचीन अव्यवस्थित स्वभाव और शील के कारण जिस की सभा में जाते थे वैसी ही वक्तृता कर देते थे । कंसरवेटिवों का दल प्रबल था ; इसका मुख्य कारण यह था कि स्वर्ग के जमींदार इन्द्र, गणेश प्रभृति भी उनके साथ योग देते थे, क्योंकि बंगाल के ज़मीदार इन्द्र गणेश प्रभृति भी उनके साथ योग देते थे, क्योंकि बंगाल के ज़मींदारों की भांति उदार लोगों की बढ़ती से उन बेचारों को विविध सर्वोपरि बलि और भान न मिलने का डर था । कई स्थानों पर प्रकाश सभा हुई । दोनों दल के लोगों के बड़े आतंक से वक्तृता दी । 'कंसरवेटिव' लोगों का पक्ष समर्थन करने को देवता भी आ बैठे और अपने अपने लोकों में भी उस सभा की शाखा स्थापन करने लगे । इधर 'लिबरल' लोगों की सूचना प्रचलित होने पर मुसलमानी-स्वर्ग और जैन स्वर्ग तथा क्रिस्तानी-स्वर्ग से पैगंबर, सिद्ध, मसीह प्रभृति हिंदू-स्वर्ग में उपस्थित हुए और 'लिबरल' सभा मैं योग देने लगे । बैकुंठ में चारों ओर इसी की धूम फैल गई। 'कसरवेटिव' लोग कहते, "छि : दयानंद कभी स्वर्ग में आने के योग्य नहीं' ; इसने १ पुराणों का खंडन किया, २ मूर्ति पूजा की निंदा किया, ३ वेदों का अर्थ उलटा पुलटा कर डाला, ४ दश नियोग करने की विधि निकाली, ५ देवताओं का अस्तित्व मिटाना चाहा. ६ और अंत में संन्यासी होकर अपने को जलवा दिया । नारायण ! नारायण ! ऐसे मनुष्य की आत्मा को कभी स्वर्ग में स्थान मिल सकता है, जिसने ऐसा धर्म विप्लव कर दिया और आर्यावर्त को धर्म वहिर्मुख किया ।" एक सभा में काशी के विश्वनाथ जी ने उदयपुर के एकलिंग जी से पूछा "र्भा ! तुम्हारी क्या मत मारी गई जो तुमने ऐसे पतित को अपने मुंह लगाया और अब उसके दल के सभापति बने हो, ऐसाही करना है तो जाओ लिबरल लोगों से योग दो ।" एकलिंग जी ने कहा "भाई, हमारा मतलब तुम लोग नहीं समझे । हम उसकी बुरी बातों को न मानते न उसका प्रचार करते, केवल अपने यहाँ के जंगल की सफाई का कुछ दिन उसके ठेका दिया, बीच में वह मर गया अब उसका माल मता ठिकाने रखवा दिया तो उसका बुरा किया ।" कोई कहता 'केशवचंद्रसेन ! छि छि ! इसने सारे भारतवर्ष का सत्यानाश कर डाला । १ वेद पुराण सब को मिटाया, २ क्रिस्तान मुसलमान सब को हिंदू बनाया । ३ खाने पीने का विचार कुछ न बाकी रक्खा । ४ मद्य की तो नदी बहा दी। हाय हाय ऐसी आत्मा क्या कभी बैकुंठ में आ सकती है।" ऐसे ही दोनों के जीवन की समालोचता चारों ओर होने लगी। लिबरल लोगों की सभा भी बड़ी धूमधाम से जमती थी । किंतु इस सभा में दो दल हो गए थे. एक जो केशव की विशेष स्तुति करते, दूसरे वे जो दयानंद को विशेष आदर देते थे । कोई कहता, अहा धन्य दयानंद स्वर्ग में विचार सभा ९८३