पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०२८

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he DES जिसने आर्यावर्त के निदित आलसी मूखों की मोह निद्रा भंग कर दी । हजारों मूखों को प्राहमणों' के (जो कंसरवेटियों के पादरी और व्यर्थ प्रणा का द्रव्य खाने वाले है। फर्द से छुड़ाया । बहुतों को उद्योगी और उत्साही कर दिया । वेद में रेल, तार, कमेटी, कचहरी दिवाकर आर्यों की कटती हुई नाक बचा ली । कोई कहता धन्य केशव ! तुम साक्षात दूसरे केशव हो । तुमने बंग देश की मनुष्यनदी के उस वेग को, जो कृश्त्तन समुद्र में मिल जाने को उच्छलित हो रहा था, रोक दिया । ज्ञानकर्म का निरादर कर के परमेश्वर का निर्मल भक्ति मार्ग तुमने प्रचलित किया । कसरवेटिव पार्टी में देवताओं के अतिरिक्त बहुत लोग थे जिन में, याज्ञवल्क्य प्रभृति कुष्ट तो पुराने ऋषि थे और कुछ नारायणभट्ट, रघुनंदनभट्टाचार्य, मंडनमिश्न, प्रभृति, स्मृति ग्रंथकार थे । सुना है कि विदेशी स्वर्ग के कुछ 'शीजा' लोगों ने भी इनके साथ योग दिया है। लिवरल दल में चैतन्य प्रभृति आचार्य, दाद, नानक, कपीर प्रभूति भक्त और ज्ञानी लोग थे । अद्वैतवादी भाष्यकार आचार्य पनदशीकार प्रभृति पहले दलमुक्त नहीं होने पाए । मिस्टर प्रेडला की भांति इन लोगों पर कसरयेटिवों ने बड़ा आक्षेप किया किंतु अंत में लिवरलों की उदारता से उन के समाज में इनको स्थान मिला था । दोनों दलों के मेमोरियल तयार कर स्वाक्षरित होकर परमेश्वर के पास भेजे गए। - एक में इस बात पर युक्ति और आग्रह प्रगट किया था कि केशव और दयानंद कभी स्वर्ग में स्थान न पा और दूसरे में इसका वर्णन था कि स्वर्ग में इनको सर्वोत्तम स्थान दिया जाय । ईश्वर ने दोनों दलों के डेप्यूटेशन को बुलाकर कहा 'वावा अब तो तुम लोगों की 'सैल्फगवर्नमेंट' है। अब कोन हम को पूछता है, जो जिसके जी में आता है करता है । अब चाहे वेद क्या संस्कृत का अक्षर भी स्वप्न में भी न देखा हो पर धर्म विषय पर वाद करने लगते हैं । हम तो केवल अदालत या व्यवहार या स्त्रियों के शपथ खाने को ही मिलाए जाते है । किसी को हमारी डर है कोई भी हमारा सच्चा 'लायक' है? भूतप्रेत ताजिया के इतना भी तो हमारा दरजा नहीं बचा । हम को क्या काम चाहे पैकुंठ में कोई आये । हम जानते हैं चारों लड़कों (सनक आदि) ने पहले ही से चाल बिगाड़ दी है। । क्या हम अपने विचारे जयधिजय को फिर राक्षस बनवायें कि किसी का रोकटोक करें । चाहे सगुन मानो चाहे निर्गुन, चाहे द्वैत मानो चाहे अद्वैत, हम अब न बोलेगे। तुम जानो स्वर्ग जाने।" डेप्यूटेशन वाले परमेश्वर की ऐसी कुछ खिजल्लाई हुई बात सुनकर कुछ डर गए । बढ़ा निवेदन सिषेदन किया । कोई प्रकार से परमेश्वर का रोश शांत हुआ । अंत में परमेश्वर ने इस विषय के विचार के हेतु एक 'सिलेक्टकमेटी' स्थापन की । इसमें राजा राम मोहन राय, व्यासदेव, टोडरमल, कबीर प्रभृति भिन्न भिन्न मत के लोग चुने गए । मुसलमानी-स्वर्ग से एक 'इमाम', क्रिस्तानी से 'थर', जैनी से पारसनाथ, औद्धों से नागार्जुन और अफरीका से सिटोवाची के बाप को इस कमेटी का 'एकस अफीशियो मेघर' किया । रोम के पुराने हरकुलिस' प्रभृति देवता तो अब गह सन्यास लेकर स्वर्गही में रहते है और पृथ्वी से अपना संबंध मात्र छोड़ बैठे हैं, तथा पारसियों के जरदुश्तजी' को कारस्याडिग आनरेरी मेंबर' नियत किया और आजा दिया कि तुम लोग । इस सब कागज पन देखकर हम को रिपोर्ट करो । उनकी ऐसी भी गुप्त आता थी कि एडिटरों की आत्मागण को तुम्हारी किसी 'काररवाई' का समाचार तब तक न मिले जब तक कि रिपोर्ट हम न पढ़ लें नहीं ये व्यर्थ चाहे कोई सुनै चाहे न सुनै अपनी टॉय टाय मचा ही देंगे। सिलेक्ट कमेटी का कोई अधिवेशन हुआ । सब कागज पत्र देखे गए । दयानन्दी और केशथी ग्रंथ तथा उनके अनेक प्रत्युत्तर और बहुत से समाचार पत्रों का मुलाहिजा हुआ । बालशास्त्री प्रभृति कई कसरवेटिव और द्वारकानाच प्रभूति लिवरल नव्य आत्मागणों की इस में साक्षी ली गई । अंत में कमेटी या कमीशन ने जो रिपोर्ट किया उसकी मर्म बात यह थी कि: "हम लोगों की इच्छा न रहने पर भी प्रभु की आज्ञानुसार हम लोगों ने इस मुकदमे के सब कागज पत्र देखें। हम लोगों ने इन दोनों मनुष्यों के विषय में जहाँ तक समझा और सोचा है निवेदन करते हैं । हम लोगों की सम्मति में इन दोनों पुरुषों ने प्रभु की मंगलमयी सृष्टि का कुछ विज नहीं किया वरंच उस में सुख और संतति अधिक हो इसी में परिश्रम किया । जिस चडाल रूपी आग्रह और कुरीति के कारण मनमाना पुरुष भारतेन्दु समन ९८४