पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०३६

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हे सुंदरी सिंगार ! आप बड़ी के बड़े हो क्योंकि चूना पान की लाली का कारण है और पान रमणी गण मुख शोभा का हेतु है इससे आप को प्रणाम है। हे चुगी नंदन ! ऐन सावन में आप को हरियाली सूझी है क्योंकि दुर्गा जी पर इसी महीने में भीड़ विशेष होती है तो हे हठ मूर्ते! तुम को दंडवत है। हे प्रबुद्ध ! आप शुद्ध हिंदू हो क्योंकि शरह विरुद्ध हौ आव आया और आप न बर्खास्त हुए इससे आप को मनाम है। हे स्वेच्छाचरिन ! इधर उधर जहाँ आप ने चाहा अपने को फैलाया है । कहीं पटरी के पास हो कहीं बीच में अड़े हो अतएव हे स्वतंत्र आप को नमस्कार है। हे ऊभड़ खाभड़ शब्द सार्थ कत्ता ! आप कोणमिति के नाशकारी हौ क्योंकि आप अनेक विचित्र कोण सम्वलित हो अतएव है ज्योतिषारि आप को नमस्कार है। हे शस्त्र समष्टि ! आप गोली गोला के चचा, छरों के परदादा, तीन के फल तलवार की धार और गदा के गाना हो इससे आप को प्रणाम है। आहा ! जब पानी बरसता है तब सड़क रूपी नदी में आप द्वीप से दर्शन देते हो इससे आप के नमस्कार में सब भूमि को नमस्कार हो जाता है। आप अनेकों के वृद्धतर प्रपितामह हो क्योंकि ब्रह्मा का पितामह है उनका पिता पंकज है उसका पिता पंक है और आप उसके भी जनक है इससे आप पूजनीयों में एल एल डी हो । हे जोगा जिवलाल रामलालादि मिश्री समूह जीविका दायक ! आप कामिनी-मंजक धुरीश विनाशक बारनिस चूर्णक हौ । केवल गाड़ी ही नहीं घोड़े की नाल सुम बैल के खुर और कंटक चूर्ण को भी आप चूर्ण करनेवाले ही इससे आप को नमस्कार है। आप में सब जातियों और आश्रमों का निवास है । आप बाणप्रस्थ हो क्योंकि जंगलों में लुड़कते हो। ब्रह्मचारी ही क्योंकि बटु हौ । गृहस्थ हौ चूना रूप से, सन्यासी ही क्योंकि घुट्टमघुट्ट हो। ब्राह्मण हौ क्योंकि प्रथम वर्ण हो करभी गली गली मारे मारे फिरते हौ । क्षत्री हौ क्योंकि खत्रियों की एक जाति हो । वैश्य हौ क्योंकि कांट वांट दोनों तुम में है । शुद्र ही क्योंकि चरण सेवा करते हौ । कायस्थ हो क्योंकि एक तो ककार का मेल दूसरे कचहरी पथावरोधक तीसरे क्षत्रियत्व हम आप का सिद्ध कर ही चुके हैं । इससे हे सर्ववर्ण स्वरूप तुमको नमस्कार है। आप ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, अग्नि, जम, काल, दक्ष और वायु के कर्ता हौ, मन्मथ की ध्वजा हो, राजा पद दायक हो, तन मन धन के कारण हो, प्रकाश के मूल शब्द की जड़ और जल के जनक हौ वरञ्च भोजन के भी स्वादु कारण हो, क्योंकि आदि ब्यंजन के भी बाबा जान हो इसी से हे कंकड़ तुमको प्रणाम है। आप अँगरेजी राज्य में श्रीमती महाराणी विक्टोरिया और पालमिण्ट महासभा के आछत प्रबल प्रताप श्रीयुत गवर्नर जनरल और लेफ्टेण्ट गवर्नर के वर्तमान होते, साहिब कमिश्नर साहिब मजिस्ट्रेट और साहिब सुपररिनटेंडेंट के इसी नगर में रहते और साढ़ेतीन तीन हाथ के पुलिस इंसपेक्टरों और कासिटेबुलों के जीते भी गणेश चतुर्थी की रात को स्वच्छंद रूप से नगर में भड़ाभड़ लोगों के सिर पांव पड़कर रुधिर धारा से नियम और शांति का अस्तित्व बहा देते है अतएव हे अंगरेजी राज्य में नवाबी स्थापक, तुमको नमस्कार है। यहा लंबा चौड़ा स्तोत्र पढ़कर हम बिनती करते हैं कि अब आप सद्दे सिकंदरी बाना छोड़ो या हटो या पिटो। हे मानद हमको टाइटल दो, खिताब दो, खिलअत दो, हमको अपना प्रसाद दो हम तुमको प्रणाम करते हे भक्तवत्सल ! हम तुम्हारा पात्रावशेष भोजन करने की इच्छा करते हैं तुम्हारे कर स्पर्श से लोक मण्डल में महामानास्पद होने की इच्छा करते हैं, तुम्हारे स्वहस्तलिखित दो एक पत्र बक्स में रखने की स्पा करते हैं, हे अंग्रेज ! हम पर प्रसन्न हो हम तुम को नमस्कार करते हैं। भारतेन्दु समग्र ९९२