पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०५१

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KKAKE आठवाँ बाब जुर्म बरखिलाफ अमन' शहर दफः (२४) जो शख्स अपने दोस्तों या रिश्त :दारो' को जो जोरू की राय के बरखिलाफ हैं अकसर अपने मकान में जमा करेगा या ज्याद :तर उनकी दावत करेगा वह इस बात का मुजरिम समझा जायगा कि उसने शहर के अमन में फरकर डाला । दफ : (२५) जो शख्स किसी रिश्त :दार या बुजुर्ग को घर में अपने जोरू के समझाने के वास्ते बुलावेगा वह भी शहर के अमन में फरक डालने का मुजरिम करार दिया जायगा । दफ: (२६) दफ : २४ यो २५. के मुजरिमों की सजा गाली वगैर : या जुर्म संगीन हो तो हब्सदवाम वअयूर दरियायशोर हो सकती है। नयाँ बाब अदूलहुक्मी दफ : (२७) जो अपनी जोरू का हुक्म न मानेगा यह अदूलहुक्मी का मुजरिम करार दिया जायगा । तमसोसात अलिफ - जोरू ने हुक्म दिया कि कल शाम तक फलाना जेवर या कपड़ा बन कर आवै मगर शौहर तंगदस्ती के सबब से नहीं ला सकता इस वास्ते मुजरिम हुआ ! के - जोरू से एक दूसरी औरत से लड़ाई है और वह लडाई भी महज' ये बुनियाद है । दोनों के शोहर आपस में करीबी रिश्त :बार हैं. एक शौहर के यहाँ कोई शादी या गमी का जरूरी काम पेश आया और दूसरे शौहर को लड़ाई के सबध से उसकी जोरू ने पहिले के यहाँ जाने से बाज रखना चाहा मगर शोहर शर्त त्यातमियत से बाज न रहा इस वास्ते वह मुजरिम जुर्म दफ : हाचा का हुआ । जीम - जोरु को शैतानपरस्ती पर एतकाद ५० है मगर शौहर एक पढ़ा लिखा आदमी है । लड़कों की स्वैरियत के वास्ते जोस ने शोडर को किसी पीर को नेवाच ११ करने को कहा मगर शोहर ने इमार को पाबन्दी से उसको नहीं माना लेहाज़ा वह मुजरिम दफ: हाजा का हुजा। दफ: (२८) मुबरिम अदूलहुक्मी को जुर्माना : या कैद या दोनों किस्म की सजायें थी जायेंगी । दसवाँ बाव जुर्म दिशशिकनी १२ दफ :(२९) जो शौहर अपनी जोरू की दिशशिकनी करेगा वह दिलशिकनी के जुर्म का मुजरिम समझा जायगा। तमसीलात अहि-शौहर ने हीलतन १३ या सरीइतन० कोई हरकत १५ ऐसी नहीं की कि उस की जोरू की दिलशिनी हो मगर जोरू ने किसी हरकत से किसी दिलशिकनी मान ली तो वह भी दिलशिकनी होगी और उस में शौहर को कोई उन्ज १५ न होगा। १. शति, २. मंग करना, ३. आशा का अवहेलना, ४, धनामाष, ५. केवल, ६. बेजड़ ७. पास की, ८, शोक, ९. भूत पूजना, १०. विश्वास, ११. मिन्नत या चढ़ावा, १२. हृदय पर चोट, १३. कपट से, १४. प्रकट में, १५. कार्य, १६. आपत्ति । कानून ताजीरात शोहर १००७ A